". अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक ~ Rajasthan Preparation

अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक


अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

अर्थव्यवस्था के मुख्य रूप से तीन क्षेत्र है।

1) प्राथमिक क्षेत्र या कृषि क्षेत्र 

इस क्षेत्र में कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, खनन, डेयरी, अयस्क आदी को सम्मिलित किया जाता है।
भारत मे सबसे ज्यादा रोजगार कृषि क्षेत्र के द्वारा प्रदान किया जाता है।
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) का मुख्य लक्ष्य कृषि क्षेत्र का विकास था।
भारत की Gdp मे कृषि क्षेत्र का योगदान 18.76 %है।

2) द्वितीयक क्षेत्र या औद्योगिक क्षेत्र 

उद्योग क्षेत्र में विनिर्माण शामिल है, इसमे प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादो को कच्चे माल के रूप मे प्रयुक्त किया जाता है।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना-1956-61 का उद्देश्य औद्योगिक विकास था।
भारत की Gdp मे द्वितीयक क्षेत्र का योगदान 28.2% है।

3) तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र 

सेवा क्षेत्र में परिवहन, संचार, भंडार, व्यापार, होटल, जलपानगृह, बैंकिंग, बीमा, आवास, वैद्यानिक व्यापारिक सेवाए, लोक प्रशासन आदी को सम्मिलित किया जाता है।
भारत की Gdp मे तृतीयक क्षेत्र का योगदान 53.04%है।

हालाँकि Gdp मे सर्वाधिक योगदान सेवा क्षेत्र का है किंतु रोजगार सर्वाधिक कृषि क्षेत्र में ही प्राप्त है।

सकल घरेलू उत्पाद 

प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक तीनों क्षेत्रो के अंतिम उत्पाद के योग को सकल घरेलू उत्पाद या राष्ट्रीय आय कहा जाता है, भारत मे Gdp की गणना हेतु केन्द्रीय सांख्यिकी मंत्रालय उत्तरदायी है।

बेरोजगारी

यदि कोई व्यक्ति काम की तलाश में है एवं उसे काम नहीं मिल रहा है तो उसे बेरोजगारी कहा जाता है।

अल्प बेरोजगारी - किसी क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक लोगों का नियोजन अल्प बेरोजगारी कहलाता है, इसका अर्थ है की लोग अपनी क्षमता से कम कार्य कर रहे है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MNREGA) - 2005

पारित - 02 अक्टूबर 2005
इसके अंतर्गत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है यदि सरकार ऐसा नहीं कर पाती है तो वह लोगों को बेरोजगारी भत्ता देगी, इस योजना के अंतर्गत सरकार उन कार्यों को वरीयता देगी जिनसे भविष्य में भूमि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी, इसे काम का अधिकार भी कहा जाता है।
भारत मे सर्वप्रथम इसकी शुरुआत 02 फरवरी 2006 मे अनंतपुर गाँव, बादावली (आंध्रप्रदेश) मे हुई।
इसका प्रारंभ 200 जिलो मे हुआ।
2008 से यह संपूर्ण भारत मे लागू कर दिया गया।
31 दिसम्बर 2009 मे इस योजना का नाम परिवर्तन करके Mnrega किया गया।

संगठित एवं असंगठित क्षेत्रक

संगठित क्षेत्रक

संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं जहाँ रोज़गार की अवधि नियमित होती हैं और लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है। वे क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं और उन्हें सरकारी नियमों एवं विनियमों का अनुपालन करना होता है, इसे संगठित क्षेत्रक कहते हैं, 
संगठित क्षेत्रक के कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा के लाभ मिलते हैं। उनसे एक निश्चित समय तक ही काम करने की आशा की जाती है। यदि वे अधिक काम करते हैं तो नियोक्ता द्वारा उन्हें अतिरिक्त वेतन दिया जाता है। वे नियोक्ता से कई अन्य लाभ भी प्राप्त करते हैं, अवकाश काल में भुगतान प्राप्त करते है, भविष्य निधि एवं सेवानुदान इत्यादि पाते हैं। वे चिकित्सीय लाभ पाने के हकदार होते हैं, जब वे सेवानिवृत होते हैं, तो पेंशन प्राप्त करते है।

असंगठित क्षेत्रक

असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों, जो अधिकांशतः सरकारी नियंत्रण से बाहर होती हैं, से निर्मित होता है। इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं परंतु उनका अनुपालन नहीं होता है। वे कम वेतन वाले रोजगार हैं और प्रायः नियमित नहीं हैं। यहाँ अतिरिक्त समय में काम करने, सवेतन छुट्टी. अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी इत्यादि का कोई प्रावधान नहीं हैं। रोजगार सुरक्षित नहीं है। श्रमिकों को बिना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है। कुछ मौसमों में जब काम कम होता है, तो कुछ लोगों को काम से छुट्टी दे दी जाती है। बहुत से लोग नियोक्ता की पसन्द पर निर्भर होते हैं।

स्वामित्व आधारित क्षेत्रक - सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक

सार्वजनिक क्षेत्रक

सार्वजनिक क्षेत्रक में, अधिकांश परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
रेलवे अथवा डाकघर सार्वजनिक क्षेत्रक के उदाहरण हैं।
सार्वजनिक क्षेत्रक का ध्येय केवल लाभ कमाना नहीं होता है। सरकार सेवाओं पर किए गए व्यय की भरपाई करों या अन्य तरीकों से करती है।

निजी क्षेत्रक

निजी क्षेत्रक में परिसंपत्तियों पर स्वामित्व और सेवाओं के वितरण की ज़िम्मेदारी एकल व्यक्ति या कंपनी के हाथों में होता है।
जबकि टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (टिस्को) अथवा रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड जैसी कम्पनियाँ निजी स्वामित्व में हैं।
निजी क्षेत्रक की गतिविधियों का ध्येय लाभ अर्जित करना होता है। इनकी सेवाओं को प्राप्त करने के लिए हमें इन एकल स्वामियों और कंपनियों को भुगतान करना पड़ता है।

No comments:

Post a Comment

Comment us